जयपुर। राजस्थान हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि 2009 से पहले के नाबालिग दुष्कर्म पीड़िताओं को भी मुआवजा मिलना चाहिए। यह निर्णय हाई कोर्ट के जस्टिस अनूप कुमार ढंड द्वारा सुनाया गया, जिन्होंने अपने फैसले की शुरुआत मनु स्मृति के श्लोक से की। उन्होंने कहा, “जहां नारियों की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं, और जहां नारियों का सम्मान नहीं होता, वहां सभी क्रियाएं निष्फल होती हैं।”
यह फैसला लगभग 20 साल पुराने मामले पर आधारित है। जस्टिस ढंड ने उल्लेख किया कि 2009 में सीआरपीसी की धारा 357 में संशोधन से पहले भी, नाबालिग रेप पीड़िताओं को 3 लाख रुपए का मुआवजा मिलना चाहिए। इस फैसले का लाभ उन मामलों में मिलेगा जिनमें संशोधन से पहले मुआवजे की मांग की गई थी और वह मामले अभी लंबित हैं।
जस्टिस ढंड ने अपने फैसले में यह भी उल्लेख किया कि बलात्कार न केवल शारीरिक अत्याचार है, बल्कि यह पीड़िता की मानसिक, मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक संवेदनशीलता पर भी गहरा प्रभाव डालता है। इसलिए अदालतों को इस तरह के मामलों को गंभीरता और संवेदनशीलता के साथ लेने की जरूरत है।
मामले की विस्तृत जानकारी में, याचिकाकर्ता की वकील नैना सराफ ने बताया कि 2006 में उनकी दो साल की बेटी के साथ दुष्कर्म हुआ था। अभियुक्त को फास्ट ट्रैक कोर्ट ने दोषी पाया, लेकिन मुआवजे के लिए कोई आदेश नहीं दिया गया। पिता ने कलेक्टर के समक्ष अर्जी पेश की, लेकिन मुआवजा नहीं मिला। सीआरपीसी में संशोधन के बाद भी, मुआवजा नहीं दिया गया।
राजस्थान पीड़ित प्रतिकर स्कीम 2011 के तहत, राज्य सरकार को नाबालिग रेप पीड़िताओं को 3 लाख रुपए का मुआवजा देने की जिम्मेदारी दी गई है। यह स्कीम 2009 के बाद की घटनाओं के लिए थी, लेकिन अब हाई कोर्ट के इस फैसले से 2009 से पहले के मामलों में भी मुआवजा मिलेगा।